एम एस सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समझते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। महात्मा गांधी और पंडित नेहरू भी उनके संगीत के प्रशंसक थे।

संगीत की दुनिया में एम एस सुब्बुलक्ष्मी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका नाम भारत रत्न से सम्मानित होने वाली पहली भारतीय संगीतकार के रूप में दर्ज है। सुब्बुलक्ष्मी की सुरीली आवाज के मुरीदों में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सरीखी शख्सियतें शामिल हैं। एम एस सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितम्बर, 1916 को तमिलनाडु के मदुरई जिले के एक मंदिर में हुआ था। इस वजह से उन्हें देवकन्या रूप में कुजम्मा कहा जाता था। सुब्बुलक्ष्मी का पहला स्टेज शो आठ साल की उम्र में मशहूर उत्सव ‘महामहम’ के दौरान हुआ था। यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई थी।
जब महात्मा गांधी ने की थी सुब्बुलक्ष्मी की कला की तारीफ: सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समझते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। महात्मा गांधी और पंडित नेहरू भी उनके संगीत के प्रशंसक थे। एक कार्यक्रम के दौरान महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर सुब्बुलक्ष्मी ‘हरि, तुम हरो जन की भीर’ भजन को गाने के बजाय सिर्फ बोल भी दें तो भी वह भजन किसी और गाने से ज्यादा अच्छा लगेगा। इतना ही नहीं उनके दीवानों में लता मंगेशकर से लेकर गुलाम अली खां तक शुमार थे। लता मंगेशकर ने उनकी संगीत साधना को देखते हुए उन्हें ‘तपस्विनी’ कहा था तो गुलाम साहब उन्हें ‘सुस्वरलक्ष्मी’ कहा करते थे।
सम्मान और पुरुस्कार: सुब्बुलक्ष्मी को ढेरों सम्मान और पुरस्कार मिले। 1954 में पद्म भूषण, 1956 में संगीत नाटक अकादमी, 1974 में रैमन मैग्सेसे, 1975 में पद्म विभूषण, 1988 में कैलाश सम्मान, 1998 में भारत रत्न समेत कई सम्मानों से नवाजा गया।
एक्टिंग में भी आजमाया हाथ: सुब्बुलक्ष्मी एक कुशल गायक तो थी हीं साथ ही अभिनय में हाथ आजमाया था। हालांकि आखिर में उन्होंने गायन को ही अपना करियर बनाया था लेकिन उनकी फिल्मों को भी खासी तारीफ मिली थी। एम एस सुब्बुलक्ष्मी ने एक्टिंग पारी की शुरुआत साल 1938 में आई फिल्म ‘सेवासदन’ से की थी। इसके बाद उनकी फिल्म भक्त मीरा बाई थी। 1945 में इस फिल्म के भजनों को खुद सुब्बुलक्ष्मी ने ही आवाज दी थी।
सुब्बुलक्ष्मी का निधन 11 दिसंबर, 2004 को 88 साल की उम्र में हुआ था। अपने जीवन की सफलताओं के दौरान वह हमेशा अपने संगीत गुरु सेम्मानगुडी श्रीनिवास अय्यर और पंडित नारायण राव व्यास का धन्यवाद करना नहीं भूलती थीं। इसके अलावा वह अपनी प्रसिद्धी का श्रेय पति कल्कि सदाशिवम को दिया करती थीं, जोकि गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी की संगीत सभाओं का इस तरह से आयोजन किया कि वह तेजी से प्रसिद्ध होने लगीं।