आगामी विधानसभा चुनावों से पहले लखीमपुर में हुई हिंसा ने भारतीय जनता पार्टी की चिंताओं को बढ़ा दिया है।

आगामी विधानसभा चुनावों से पहले लखीमपुर में हुई हिंसा ने भारतीय जनता पार्टी की चिंताओं को बढ़ा दिया है। 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इस जिले की सभी आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2012 के चुनावों नें भगवा पार्टी के खाते में सिर्फ एक ही सीट आई थी। अब बीजेपी को डर है कि लखीमपुर में हुई हिंसा का असर आस-पास के जिलों (पीलीभीत, शाहजहांपुर, हरदोई, सीतापुर और बहराइच) में भी देखने को मिल सकता है, इन इलाकों में पिछले चुनावों में बीजेपी का दबदबा रहा था, अन्य राजनीतिक दलों की बढ़ती दिलचस्पी के पीछे भी इसे एक कारण माना जा रहा है।
लखीमपुर समेत आस-पास के 7 जिलों में कुल 50 सीटें हैं, मौजूदा स्थिति में इनमें से 45 पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है, जबकि समाजवादी पार्टी के पास 4 विधायक हैं। वहीं एक विधायक बीएसपी का है। जबकि 2012 विधानसभा चुनावों के नतीजे इससे बिल्कुल विपरित थे। उस चुनावों में सपा को 25 सीटों पर जीत मिली थी, बसपा को 10 सीटों पर कामयाबी मिली थी। भारतीय जनता पार्टी 5 और कांग्रेस 2 पर ही सिमट गई थी।
लखीमपुर के जिस इलाके में रविवार को हिंसा की घटना हुई, वह निघासन विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इस सीट पर 1993 से लेकर अब तक बीजेपी ने तीन बार जीत दर्ज की है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा इस सीट पर 2007 में हार गए थे जबकि 2012 में जीतने में कामयाब रहे थे।
लखीमपुर खीरी में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है, इसके बाद ओबीसी में गैर-यादवों का दबदबा रहा है, जिसमें मुस्लिम और कुर्मी प्रमुख हैं। आबादी का 80 फीसदी हिस्सा ग्रामीण है, जोकि गन्ने की खेती पर निर्भर हैं। बेहद उपजाऊ मानी जाने वाली इस जमीन पर कई समृद्ध सिख किसान परिवारों का भी दबदबा रहा है।